ज़रा सोचिए कि अगर पाकिस्तान के बड़बोले पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने भारत पर परमाणु हमला कर दिया होता, तो क्या होता? जवाब बहुत सीधा है कि अगर पाकिस्तान ऐसा करता, तो उसका वजूद कभी का ख़त्म हो गया होता। यह भी सच है कि भारत को बड़ा नुकसान पहुंचता। हक़ीक़त यह भी है कि ऐसा होता, तो दुनिया कई स्तरों पर वैसी नहीं होती, जैसी आज है। शक्तियों के ध्रुव बदले हुए होते। मुशर्रफ़ की स्वीकारोक्ति में सबसे बड़ा संदेश यह छुपा हुआ है कि मौजूदा प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ और पाकिस्तान की फ़ौज को इससे बड़ा सबक़ लेना चाहिए।
जापान के एक अख़बार को दिए इंटरव्यू में परवेज़ मुशर्रफ़ ने कहा है कि साल 2002 में भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर था और उनके मन में भारत पर परमाणु हमले का ख्याल आया था। लेकिन भारत की तरफ़ से होने वाली प्रतिक्रिया के अनुमान से वे डर गए और विचार मन में ही दम तोड़ गया। साल 2001 पर भारतीय संसद पर हमले के बाद दोनों देशों के संबंधों में आई तीखी खटास 2012 में काफ़ी बढ़ गई थी। परवेज़ मुशर्रफ़ ने माना है कि परमाणु हमले का विचार आने पर कई रात उन्हें नींद नहीं आई।
पिछले साल सितंबर में उरी हमले के विरोध में जब भारतीय फ़ौज ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सर्जिकल स्ट्राइक की थी, तब वहां के कई नेताओं ने परमाणु हमले की बंदर-घुड़कियां दी थीं। पाकिस्तान के ऐसे नेताओं और फ़ौजी हुक़्मरानों को मुशर्रफ़ के इस बयान का मर्म समझकर बड़े बोल बोलने से बचना चाहिए। उन्हें समझ में आ जाना चाहिए कि भारत के ख़िलाफ़ करगिल युद्ध जैसी साज़िश रचने वाले दुस्साहसी मुशर्रफ़ को परमाणु हमले के ख़याल से ही क्यों पसीने छूट गए होंगे?
दूसरा वाक़या 1999 में करगिल युद्ध के दौरान का है। हाल ही में ख़ुलासा हुआ है कि 24 जून, 1999 की सुबह भारतीय लड़ाकू जगुआर ने पीओजेके में नियंत्रण रेखा से प्वाइंट 4388 पर पाकिस्तानी अग्रिम सैन्य बेस गुलटेरी पर निशाना साध लिया था। उस वक़्त वहां नवाज शरीफ और परवेज़ मुशर्रफ़ मौजूद थे। लेज़र गाइडेड सिस्टम से वहां बम गिराया जाना था, लेकिन एक भारतीय एयर कमोडोर के निर्देश पर अंतिम समय में निशाना बदलना पड़ा। दोनों बाल-बाल बच गए। बम अगर निशाने पर गिरता, तो पाकिस्तानी फ़ौज परमाणु हमला कर सकती थी। ऐसा होता, तो पाकिस्तान का वही हश्र होता, जो परवेज़ मुशर्रफ़ के दिमाग़ में 2002 में आया था।
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