नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी की परिकल्पना ही बड़ी अजीब लगती है, वैसे एक बात तो पिछले दिनों ख़ुद राहुल गांधी ने अमेरिका की बर्कले यूनिवर्सिटी में मान ली थी कि मोदी मोदी उनसे बहुत बेहतर भाषण देते हैं, राहुल गांधी ने माना था कि मोदी मोदी में यह कला है कि वे सभा में मौजूद लोगों के कई तरह के समूहों तक अपनी बात बहुत अच्छी तरह कम्युनिकेट कर सकते हैं, जबकि वे इसमें माहिर नहीं हैं, लोकतंत्र में अगर कोई नेता अपनी बात हू-ब-हू यानी जो कहना चाहता है, वह लोक यानी लोगों तक अच्छी तरह नहीं पहुंचा सकता, तो वह कितना कामयाब हो सकता है? तो एक तो यही अंतर मोदी और राहुल में बहुत बड़ा है, दूसरी बात कि राहुल को राजनीति विरासत के धंधे के तौर पर मिली है, मोदी के साथ ऐसा नहीं है, उन्होंने वर्षों तक आरएसएस के लिए काम किया। फिर बीजेपी में ज़मीनी कार्यकर्ता के तौर पर आए, इसलिए राहुल को देश के लोगों की सियासी नब्ज़ उतनी नहीं पता, जितनी मोदी जानते हैं
यह ठीक है कि राहुल गांधी मोदी के मुक़ाबले युवा हैं और देश में 35 साल की उम्र के युवाओं की आबादी 65 फ़ीसदी से ज़्यादा है, लेकिन अगर वे अपनी बात नौजवानों तक पहुंचा ही नहीं पाएंगे, तो फिर किस राजनैतिक ऊंचाई पर पहुंच सकते हैं, अनुमान लगाना कठिन नहीं है, बर्कले यूनिवर्सिटी में राहुल ने वंशवाद को भारत में सामान्य बताया यानी उसकी हिमायत करते दिखे, लेकिन बीजेपी और मोदी इसके उलट विचार रखते हैं
हां, एक बात में नरेंद्र मोदी और राहुल एक जैसे हैं, बीजेपी में जिस तरह सभी कद्दावर नेताओं को ठंडी बरफ़ में लगा दिया गया है, केवल मोदी और अमित शाह ही फ्रंट पर हैं, ठीक उसी तरह कांग्रेस ने राहुल को आगे कर सभी संभावनाशील नेताओं को हाशिये पर रखा हुआ है, फ़र्क यही है कि बीजेपी में यह पार्टी स्तर पर हो रहा है और कांग्रेस में परिवार के स्तर पर
दोनों ही दाढ़ी रखते हैं, लेकिन मोदी कभी क्लीनशेव नहीं देखे जाते, जबकि राहुल दिख जाते हैं, एक और समानता दोनों में यह है कि मोदी अपनी पत्नी को बहुत पहले छोड़ चुके हैं, अकेले हैं, तो राहुल भी ऑफ़ीशियली कुंआरे हैं, वैसे कहने वाले तो बहुत कुछ कहते हैं, कहते रहेंगे
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