असल में कश्मीर समस्या बहुत ‘छोटी’ है। लेकिन कश्मीर में जब आतंकवादी ख़ून-ख़राबा करते हैं या पाकिस्तान की साज़िश की वजह से सुरक्षा बलों के जवान शहीद होते हैं, तो लोग आग-बबूला हो जाते हैं। जब किसी सैनिक के शव से छेड़छाड़ होती है, तो देश गुस्से में उबलने लगता है। लोग तुरंत बदले की मांग करने लगते हैं। उन्हें लगता है कि पाकिस्तान को कुछ घंटे में नेस्तनाबूद किया जा सकता है। वे मानते हैं कि हमारी सरकार पता नहीं क्यों विवश है? सोशल मीडिया पर सरकार के ख़िलाफ़ भावुक संदेशों की बाढ़ आ जाती है। छुटभैये कवि ऐसे जोशीले गीत मंचों पर चीख-चीख कर पढ़ने लगते हैं कि उन्हें छूट दे दी जाए, तो वे पाकिस्तान में घुसकर उसे सबक़ सिखा देंगे। कविताएं और गीत इतने जोशीले कि सारे तर्क भूलकर भुजाएं दुश्मन से दो-दो हाथ करने को फड़फड़ाने लगती हैं। बहुत बार भावुकता का स्तर इतना बढ़ जाता है कि हम अपनी सरकार को कायर और डरपोक तक करार देने लगते हैं।
जबकि हम जानते हैं कि 2016 में सितंबर के आख़िर में हमारी सेना ने उरी में अपने कैंप पर हमले का बदला लेने के लिए पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान को करारा जवाब दिया था। इससे पहले 2015 में भी हमारे जांबाज़ सुरक्षा बल म्यांमार के जंगलों में घुसकर वहां चल रहे आतंकी शिविरों को तहस-नहस कर चुके हैं। अपने सुरक्षा बलों के नुकसान और देश विरोधी किसी भी घटनाक्रम पर क्रोध आना लाज़िमी है। लेकिन हमारे राष्ट्रभक्त नौजवानों को समस्या के बारे में तथ्यपरक और तर्कसंगत जानकारी होगी, तो शायद उनके गुस्से का उफ़ान उतना नकारात्मक नहीं होगा, जितना अभी महसूस होता है। कुछ तथ्यों, आंकड़ों के ज़रिए जम्मू-कश्मीर को समझने की कोशिश करते हैं।
मोटे तौर पर यह राज्य तीन हिस्सों में बंटा है। तीनों हिस्से राजनैतिक, सांस्कृतिक, भाषाई, जलवायु और क़रीब-क़रीब हर घटक के हिसाब से एक जैसे नहीं हैं। जम्मू और कश्मीर संभागों में 10-10 ज़िले हैं। लद्दाख में दो ज़िले हैं। जिसे हम ‘कश्मीर समस्या’ कहते हैं, उसका जम्मू और लद्दाख से कोई लेना-देना नहीं है। समस्या की जड़ कश्मीर घाटी है। इसके अलावा पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले जम्मू कश्मीर यानी पीओजेके विवाद के केंद्र में है। अभी भारत के पास जम्मू-कश्मीर राज्य के रूप में एक लाख, एक हज़ार, 387 वर्ग किलोमीटर ज़मीन है। पाकिस्तान के पास 78 हज़ार, 114 वर्ग किलोमीटर हिस्सा है।
जम्मू संभाग का कुल क्षेत्रफल 26 हज़ार, 293 वर्ग किलोमीटर और आबादी 53 लाख, पांच हज़ार, 811 है। कश्मीर संभाग का क्षेत्रफल 15 हज़ार, 948 और आबादी 69 लाख, सात हज़ार, 622 है। इसी तरह लद्दाख का क्षेत्रफल 59 हज़ार, 146 वर्ग किलोमीटर और आबादी दो लाख, 90 हज़ार, 492 है।यानी जम्मू और लद्दाख के कुल 85 हज़ार, 439 वर्ग किलोमीटर यानी राज्य के 84.26 प्रतिशत इलाक़े में कुल 56 लाख, 41 हज़ार, 303 लोग रहते हैं। दूसरी तरफ़ कश्मीर संभाग के 15.73 फ़ीसदी हिस्से में क़रीब 13 लाख ज़्यादा लोग रहते हैं। इन आंकड़ों में जनगणना के क़रीब छह साल बाद अच्छा इज़ाफ़ा हुआ होगा। आंकड़ों से जम्मू और लद्दाख के मुक़ाबले कश्मीर में आबादी के घनत्व का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
कश्मीर में 96.40 प्रतिशत आबादी यानी ज़्यादातर मुस्लिम धर्म के लोग हैं। घाटी में हिंदू आबादी 2.48 प्रतिशत ही है। जबकि पूरे राज्य की औसत मुस्लिम आबादी 68.31 और हिंदू आबादी 28.45 प्रतिशत है। मोटे तौर पर बात करें, तो कश्मीर समस्या राज्य की क़रीब 16 फ़ीसदी ज़मीन तक ही सिमटी है। लेकिन माहौल ऐसा बन गया है कि लगता है कि पूरा जम्मू कश्मीर ही समस्याग्रस्त है। कश्मीर घाटी के 10 ज़िलों में से केवल चार यानी दक्षिणी कश्मीर के बारामूला, कुलगाम, अनंतनाग और शोपियां ही हिंसा के बड़े केंद्र हैं।
हिज़्ब के भटके हुए युवा आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद पिछले साल आठ जुलाई से शुरू की गई सुनियोजित हिंसा की आग में घाटी के बाक़ी हिस्से को भी चपेट में लेने की साज़िश की गई। इससे पहले आमतौर पर शांत रहने वाले ग्रामीण इलाक़े भी हिंसा की चपेट में आने लगे। वहां कई स्कूल ख़ाक कर दिए गए और सोशल मीडिया के ज़रिए दुष्प्रचार कर माहौल ख़राब करने की कोशिशें अब भी जारी हैं। तो अब आप समझ गए होंगे कि ‘कश्मीर समस्या’ बहुत छोटे इलाक़े से जुड़ी है, लेकिन साज़िशों के तहत इतनी बड़ी बनाई जा चुकी है। ये जानना ज़रूरी है कि ऐसा कैसा हुआ? किसी अगले लेख में।