गुरमीत राम रहीम, डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख अब जेल में अपने साथी कैदियों को प्रवचन देकर सच्चे मार्ग पर चलने की प्रेरणा देंगे। लेकिन उनके प्रवचन से मोहित उनकी दासियां आज भी उनके डेरे पर उनका लौटने का इंतजार कर रही हैं। गुरमीत राम रहीम का चेहरा अब बेनकाब हो चुका है उस की काली करतूतों का पर्दाफाश हो चुका है लेकिन अभी भी समाज में कई ऐसे लोग हैं जो राम रहीम की भक्ति में पूरी तरह से लीन है। कथित तौर पर गुरमीत राम रहीम सिंह की गोद ली हुई बेटी के साथ भी गलत संबंध होने का आरोप लगाया जा रहा है। इस बात में कितनी सच्चाई है यह तो राम रहीम या फिर उनकी लाडली बेटी ही बता सकती है।
लेकिन इंसान जब अधर्म के रास्ते पर चलता है तो उसके लिए क्या बेटी क्या बहन फिर वह किसी को नहीं समझता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जो खुलासा किया गया है उसे जानकर आप पूरी तरह से हैरान रह जाएंगे। दैनिक भास्कर में छपी रिपोर्ट के मुताबिक राम रहीम के पकड़े जाने के बाद उसके डेरे से कई लड़कियों को दूसरी जगह शिफ्ट कराने की कोशिश की गई लेकिन वह लड़कियां राम रहीम सिंह का डेरा छोड़कर नहीं जाना चाहती हैं।
डेरा सच्चा सौदा में स्थित शाही बेटियां बसेरा मैं 18 साल से ज्यादा उम्र की दस लड़कियों को यहां से दूसरी जगह शिफ्ट करने की कोशिश की गई। लेकिन इन लड़कियों ने साफ साफ मना कर दिया वह नहीं चाहती हैं कि बाबा के बसेरे को छोड़कर वह कहीं और जाए। जिससे यह साफ प्रतीत होता है कि वह बाबा राम रहीम से कितना लगाव रखती हैं।बाबा राम रहीम के बलात्कारी साबित होने के तुरंत बाद इन लड़कियों ने यहां से निकलने की कोशिश करनी चाहिए थी।
लेकिन यह लोग यहां से जाने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है जिससे हम कह सकते हैं कि यह लड़कियां बाबा से प्यार करती हैं और इनको बाबा द्वारा किए जाने वाले कृत्य के बारे में पहले से ही जानकारी है। इसीलिए अपने प्यार को छोड़कर कहीं और जाना नहीं चाहती हैं। बाबा राम रहीम के जेल जाने के बाद एक के बाद एक नए नए खुलासे होते जा रहे हैं देश में कोई भी बाबा आगे इतना बड़ा साम्राज्य स्थापित ना कर पाए। इसके लिए देश की जनता को इन बातों पर गौर करना होगा कि एक आम इंसान कभी भी अपनी मोह माया सुख समृद्धि ऐसो आराम छोड़कर सन्यासी नहीं बन सकता है इसीलिए आप ऐसे लोगों पर भरोसा करना छोड़ दीजिए।
गुरमीत राम रहीमों पर क्यों नहीं डिगता महिला अनुयायियों का विश्वास
डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम इंसा को 20 साल की सज़ा ने साबित कर दिया है कि भारतीय लोकतंत्र में शक्ति संपंन्नों को अपराध करने की छूट नहीं है। साबित हो गया है कि इंसाफ़ का राज क़ायम है और क़ायम रहेगा। लेकिन जिस तरह इस अपराधी बाबा के समर्थन में लोगों ने हिंसा की, उससे एक सवाल तो खड़ा होता ही है कि आस्था के नाम पर ऐसे लोग मासूमों को भी अपराधी कैसे बना देते हैं? लोगों को कैसे यह यक़ीन हो जाता है कि ऐसे ढोंगी, अपराधी भगवान हैं?
ख़ास तौर पर महिलाएं किस तरह इन अपराधियों पर अगाध श्रृद्धा करने लगती हैं? ग़ौर करें, तो भारतीय महिलाओं की यह एक प्रवृत्ति ही यह समझने के लिए काफ़ी है कि भारत की आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी उनके प्रति सामाजिक व्यवस्था और सरकारों का रवैया कितना उदासीन रहा है? असल में भारत में महिलाओं को दिया जाने वाला दोयम दर्जा इसके लिए ज़िम्मेदार है। हर मामले में महिलाओं को पीछे रखने की मानसिकता की वजह से वे ख़ुद को असुरक्षित महसूस करती हैं और यही वजह है कि उन्हें ऐसे ढोंगी बाबाओं में अपना रहनुमा नज़र आने लगता है।
ऐसा नहीं है के भारत में महिलाओं के जीवन सुधार की तरफ़ सोचा ही नहीं गया है, लेकिन सोच पर अमल के मामले में भारतीय पुरुष समाज पूरी तरह ईमानदार साबित नहीं हो पाया है। जब तक बच्चियों के प्रति परिवार और समाज की सोच परिपक्व नहीं होती, तब तक ख़ासकर ग्रामीण अंचलों में महिलाएं इस तरह की मानसिक पराधीनता से मुक्त नहीं हो पाएंगी। काम हो रहा है, लेकिन तेज़ रफ़्तार की ज़रूरत है। देश की समृद्धि की राह महिलाओं की मानसिक मज़बूती के आधार पर ही बन पाएगी, यह समझने की ज़रूरत है।
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