अपनी मेहनत से क्रिकेट के आस्मां में चमकने वाले खिलाड़ियों की कहानी तो आपने बहुत सुनी होगी लेकिन आज पढ़िए एक ऐसे खिलाड़ी के बारे में जो फौजी बनना चाहता था, लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था और आज उसकी तेज गेंदबाजी विरोधी टीम पर आग बनकर बरस रही हैं. हम बात कर रहे हैं भारत के तेज गेंदबाज उमेश यादव की महाराष्ट्र के नागपुर से निकला ये खिलाड़ी बहुत साधारण और गरीब परिवार से आया और आज जहां मौजूद है, वो उसकी मेहनत का फल है
खदान मजदूर का बेटा, स्टार क्रिकेटर
उमेश यादव के पिता खदान में मजदूरी के काम करते थे. गरीबी के कारण बेटा उमेश भी 12वीं से ज्यादा की पढ़ाई नहीं कर सका. पिता की मदद के लिए उसने नौकरी की कई कोशिशें की लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, उमेश यादव के पिता ने जो जिंदगी जी, वो नहीं चाहते थे कि बेटा भी खदान मजदूर बनकर रहे. शायद इसलिए उमेश यादव को स्टार बनाने में उनकी भी खासी भूमिका थी.
फौजी बनना चाहते थे उमेश यादव
घर चलाने और पैसे कमाने का बोझ जब उमेश यादव के कंधे पर भी आया तो उन्होंने फौजी बनने का सपना देखा, उन्होंने फौज में जाने के साथ-साथ पुलिस सर्विस का हिस्सा बनने का प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हो सके,
क्रिकेट से शुरू हुई कमाई
शुरुआत में क्रिकेट ने सिर्फ उनके शौक ही नहीं कमाई के सपने को भी पूरा किया, स्थानीय स्तर पर कई मैच जीतकर वो 8 से 10 हजार रुपए कमा लेते थे. जो उनके 2 महीने के लिए काफी हुआ करते थे, बाद में उन्हें एहसास हुआ कि अच्छी कमाई टेनिस की गेंद से खेलने की बजाए लेदर की बॉल से खेलने में है, कॉलेज की टीम में शामिल होने का सपना देखा लेकिन सफल नहीं हो सके लेकिन विदर्भ जिमखाना की टीम में उनको जगह मिली.
फर्स्ट क्लास में मिला मौका
विदर्भ जिमखाना की तरफ से खेलते हुए उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया और उनकी फर्स्ट क्लास क्रिकेट में जगह मिली. वहां से साल 2008 में दिल्ली डेयरडेविल्स ने उन्हें 20 लाख करीब की रकम में खरीदा, अच्छे प्रदर्शन के चलते साल 2010 में उन्हें वनडे मैचों और 2011 में भारतीय टेस्ट टीम में खेलने का मौका मिला. उसके बाद जो हुआ वो उनकी मेहनत की कहानी बयां करती है