मेरे हुज़रे पर आना कभी मुलाकात करते हैं
तुम आसमान से उतर आओ तब बात करते है
कभी आरजू थी उनकी मगर अब नहीं है
मै मानता जरूर था मगर वो रब नहीं है
एक अरसे से उलझी है हँसी मेरी
मेरे हर गम का मगर वो सबब नहीं है
मैं अपने जिस्म की रूह बदलूं तो कैसे
महोब्बत है मेरी कोई मज़हब नहीं है
……हिमांशु श्रीवास्तव
This post was last modified on September 8, 2021 11:21 PM